मैं न कहती थी इश्क है ज़िंदा आज भी। मैं न कहती थी इश्क है ज़िंदा आज भी।
तुझसे ही बिखरु और तुमसे ही निखरु, कुछ ऐसा ही हो अंत ये मेरा... तुझसे ही बिखरु और तुमसे ही निखरु, कुछ ऐसा ही हो अंत ये मेरा...
खामोशी से इश्क़ बताते रहे, हज़ार तरीकों से जताते रहे, खामोशी से इश्क़ बताते रहे, हज़ार तरीकों से जताते रहे,
वो भी तो पूरा नहीं प्रेम खुद में ही अधूरा निकला...! वो भी तो पूरा नहीं प्रेम खुद में ही अधूरा निकला...!
खुशबू वो रूहानी थी या मौजों की रवानी थी... खुशबू वो रूहानी थी या मौजों की रवानी थी...
कैसे लिखूं मैं पूरी कहानी उस अधूरे बंधन के ओ साथी मन के कैसे लिखूं मैं पूरी कहानी उस अधूरे बंधन के ओ साथी मन के